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Asur 2 Review: writers ने बदला असुर का सुर ,अरशद वारसी पर भरी पड़े वरुण सोबती।

वेबसेरीज़ असुर 2 की कहानी कल्कि और कली के युद्ध के आधार पर तैयार की गयी वेब सीरीज है। सीरीज में किरदारों का क़त्ल करने के बाद उनकी ऊँगली काटने का राज़ writers के बदलने से कही खो गया पिताहंता बालक किशोर हो चुका है। अपनी वाणी के आकर्षण का जाल वह साधारण मनुष्यों से लेकर विज्ञान के प्रकांड पंडितों तक पर फेंक रहा है। एआई के एक प्रोफेसर का वह सहायक बनने में कामयाब रहता है। और, दुनिया की सबसे बड़ी सोशल मीडिया कंपनी का सर्वर हैक करके उसके यूजर्स का ढेर सारा डाटा चुरा लेता है। अब जो भी मोबाइल या लैपटॉप के आसपास है। सभी तक उसकी पहुंच है। सोशल मीडिया के इस दानव की कहानी पुराणों से जोड़ते हुए वेब सीरीज ‘असुर 2’ के लेखक बार बार राष्ट्रीय समस्याएं गढ़ते रहते हैं और फिर जब असली समस्या आती है तो ‘भेड़िया आया’ वाली कहानी की तरह दर्शक कोशिश करके भी रोमांचित नहीं हो पाते हैं।

गौरव शुक्ला के अलावा इस बार वेब सीरीज ‘असुर 2’ को लिखने में अभिजीत और सूरज ने अपनी कारस्तानी दिखाई है। पटकथा में संवाद इतने लंबे लंबे हैं और वे भी कहानी को आगे बढ़ाने के लिए। ये सब मिलकर कहानी होते हुए नहीं दिखाते हैं बल्कि किरदारों के संवादों के जरिये आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं और सीरीज यहीं बुरी तरह मात खाती है। इसी के चलते तीसरे एपिसोड से रफ्तार में आना शुरू करने वाली सीरीज छठे एपिसोड में ही हांफ जाती है। बीच के ये तीन एपिसोड सीरीज के बेहतरीन एपिसोड हैं। इस दौरान अदित केएस का किरदार ईशानी चौधरी भी कहानी में रुचि बनाए रखता है लेकिन उसके जाते ही कहानी फिर एक सामान्य अपराध कथा में बदल जाती है। किवदंतियों और आधुनिकता

कलाकारों के मामले में बरुन सोबती ही फिर एक बार सीरीज को आखिर तक देखने की वजह बनते हैं। अपनी बेटी को खो चुका फोरेंसिक का जानकार सीबीआई अफसर अपनी जिस पत्नी से तलाक की कगार तक पहुंच चुका है, उसी पत्नी की मदद उसे इस कहानी में बार-बार लेनी पड़ती है। अपने जिस सीनियर को वह अपना आदर्श मानता था और जिसे पिछले सीजन में उसने गिरफ्तार किया, उसके साथ भी उसे फिर काम करना पड़ रहा है। साथी महिला अफसर के प्रति उसका स्नेह भाव है। एक ही किरदार के इतने शेड्स होने के बावजूद इन सारी क्षेपक कथाओं का रस वेब सीरीज ‘असुर 2’ से गायब है। शुरू-शुरू में तो कहानी के किरदारों के निजी जीवन में इसे लिखने वालों को रस दिखता है लेकिन फिर सब सोशल मीडिया के ताने बाने और बॉट्स से नियंत्रित हो सकने वाले शेयर बाजार में ऐसा भटकते हैं कि इन सारी क्षेपक कथाओं को वह कहीं हाशिये पर छोड़ आते हैं।

बाकी कलाकारों में विशेष बंसल और अथर्व विश्वकर्मा का काम लाजवाब है। ‘ये मेरी फैमिली’ के हर्षू में एक कमाल का कलाकार बनने की असीम संभावनाएं दिखती हैं। चेहरे पर ठहराव लिए शुभ के किरदार में जब विशेष अपने संवाद बोलते हैं तो दर्शक भी उनकी तरफ आकर्षित होते हैं। और, कुछ कुछ ऐसा ही होता है अथर्व विश्वकर्मा के अभिनय में। लेह से लेकर दिल्ली तक की यात्रा में अनंत बने अथर्व ने खूब असरदार काम किया है। शारिब हाशमी का किरदार पहले ही सीजन में मर चुका है तो इस बार अमेय वाघ के जिम्मे सीरीज को पीछे से धक्का देने का काम आया है। पल पल रंग बदलने वाले इस किरदार में अमेय ने पूरी जान भी लगाई है, खासतौर से अपना राज खुल जान के बाद के जो उनके दृश्य हैं, वे देखने लायक हैं। ऋद्धि डोगरा, अनुप्रिया गोयनका ने एक दो जगह छोड़कर बाकी सारे आठ एपिसोड में एक जैसी शक्ल बनाए रखी है। उनसे बेहतर काम तो सीबीआई के मुखिया बने पवन चोपड़ा ने किया है। मेयांग चांग की कास्टिंग गलत है और बड़े शुभ के रूप में अभिषेक चौहान भी बेअसर हैं।

वेब सीरीज ‘असुर’ के पहले सीजन को मैंने अपने रिव्यू में पांच में से चार स्टार की रेटिंग दी थी। इस बार इसके दूसरे सीजन से भी दर्शकों को काफी उम्मीदें रही हैं। अरशद वारसी का एकसार अभिनय इस बार सीरीज को बहुत नुकसान पहुंचाता दिख रहा है। निर्देशक ओनी सेन ने भी यूं लगता है कि उनको उनके हिसाब से छोड़ रखा है। सीरीज को इस बार वास्तविकता के करीब रखने की कोशिश भी ज्यादा नहीं दिखती है। सीरीज का अगर तीसरा सीजन बनता है जिसका संकेत आखिरी एपिसोड में मिलता भी है तो इसकी पटकथा के साथ-साथ अरशद वारसी के किरदार पर भी ज्यादा ध्यान देना बहुत जरूरी है। सीरीज की सिनेमैटोग्राफी बहुत साधारण है और संपादन में चुस्ती की तमाम गुंजाइशें हैं। ऐसी कहानियों का असर रचने में बैकग्राउंड म्यूजिक की मदद बहुत मिलती है, लेकिन इस पर भी खास तरीके से काम हुआ नहीं दिखता।

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